फेसबुक के कारण ब्लॉगिंग में गिरावट आई है । सृजनात्मक अभिव्यक्ति घटी है,चिट्ठों के पाठक भी। क्या किया जाए?

Aflatoon Afloo फेसबुक के कारण ब्लॉगिंग में गिरावट आई है । सृजनात्मक अभिव्यक्ति घटी है,चिट्ठों के पाठक भी। क्या किया जाए?



Vishnu Bairagi यह चिन्‍ताजनक है। लगता है, 'फटाफट संस्‍कृति' यहॉं भी असर दिखाने लगी है।

गंगा सहाय मीणा समय के हिसाब से माध्‍यम बदलते हैं. जब इंटरनेट आया तो लगा कि किताबें खत्‍म हो जायेंगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. 24 घंटे वाले न्‍यूज चैनल आए तो लगा अब अखबार कौन पढेगा, लेकिन अखबार बने हुए हैं पूरी ताकत के साथ. उसी तरह फेसबुक आने पर ब्‍लॉग्‍स को खतरा पैदा हुआ है, लेकिन मुझे पूरा यकीन है कि वे बने रहेंगे और प्रसार भी बढेगा. हम अपने ब्‍लॉग्‍स के लिंक फेसबुक पर शेयर कर सकते हैं. वैसे फेसबुक भी बहस का अच्‍छा मंच हो सकता है. मुझे तो यह भी लगता हे कि फेसबुक पर होने वाली गंभीर बहसों को ब्‍लॉग और प्रिंट मीडिया में जगह दी जानी चाहिए.

Dilip Kawathekar यही बात मुझे इतने दिनों से चुभ रही है, क्योंखि यह २०-२० क्रिकेट है, ५०० शब्दों में सिमटा हुआ संसार....@मीणा जी का सुझाव अच्छा है, लिंक वाला.

सुयश सुप्रभ Suyash Suprabh हमें ब्लॉग पर ध्यान देना चाहिए। फ़ेसबुक पर हमारे संदेशों की उम्र बहुत कम होती है। ब्लॉग पर हर पोस्ट का अपना लिंक होता है। इससे हम विचारों को अलग-अलग मंचों तक पहुँचा सकते हैं। वैसे मैं जो कह रहा हूँ उसका पालन करना मेरे लिए भी आसान नहीं है। फ़ेसबुक पर टिप्पणियाँ बहुत जल्दी मिलती हैं। इन टिप्पणियों से जो संवाद स्थापित होता है उसका आकर्षण ही लोगों को फ़ेसबुक तक खींच लाता है।

Aflatoon Afloo फेसबुक से ब्लॉग पर पहुंच कर उसे पढ़ने के बाद भी टीप ’फेसबुक’ पर ही देना आम है । यह तो आलस्य नहीं है। क्यों ?

Lovely Goswami फेसबुक में गाली -गलौज कम होती है इसलिए ...ब्लोग्स में कुछ गुट्बाज प्रतिक्रियावादी सिर्फ इसी काम के लिए दिन -रात लगे रहते हैं

Vishnu Bairagi मुझे लगता है, यह संक्रमण-काल है। फेस बुक की अपनी विशेषताऍं/उपयोगिता है और ब्‍लॉग की अपनी। मालवी की एक कहावत है - 'आम्‍बा की भूख आमली से नी जाय।' अर्थात् आम की भूख इमली से नहीं मिटती। सो, ब्‍लॉग आम है और फेस बुक इमली। फेस बुक 'पानी केरा बुदबुदा' समान और ब्‍लॉग 'अनश्‍वर' की तरह है। फेस बुक '20-20' और ब्‍लॉग 'टेस्‍ट' की तरह है। आलस्‍य वाली आपकी बात बिलकुल ठीक है।

मेरे साथ ऐसा कुछ बार हुआ कि मैंने फेस बुक पर या बज पर टिप्‍पणी कर दी और मान लिया कि मैंने ब्‍लॉग पर टिप्‍पणी की है। किन्‍तु जब वास्‍तविकता सामने आई तब से मैंने तय कर लिया कि टिप्‍पणी केवल ब्‍लॉग पर करूँगा, और कहीं नहीं।

Sharma Ramakant मेरा तो मानना यह है कि फेसबुक पर लोगों की सृजनात्मकता में इज़ाफा हुआ है . यह मंच बेहद महत्वपूर्ण है . इसकी सार्थकता को बनाये रखना हम सभी की जिम्मेदारी है .

सुयश सुप्रभ Suyash Suprabh ऐसे अनेक ब्लॉग हैं जिन्हें पाठक नियमित रूप से पढ़ते हैं। इन ब्लॉगों पर जो टिप्पणियाँ आती हैं वे सभी पाठकों के लिए हमेशा सुलभ होती हैं। फ़ेसबुक पर ऐसा नहीं होता है। इस पर दूसरों के प्रोफ़ाइल पेज पर पुराने संदेश ढूँढ़ना आसान नहीं होता है।

Tara Chandra Gupta sahi kah rahe hain sir ji

Abhay Tiwari छोटी-मोटी बातें यहीं कह-सुन लीं जाती हैं, लम्बी चौड़ी बातों के लिए अभी भी ब्लौग ही है, कम से कम मेरे लिए तो है। ये ज़रूर है कि ये अहम मंच हो गया है।
 
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