भारतीय रुपये के नए चिन्‍ह को अंग्रेजी और डॉलर की तर्ज पर हिन्‍दी में भी संख्‍या से पहले लिखा जा रहा है. मुझे लगता है हिन्‍दी में इसे संख्‍या का बाद लिखा जाना चाहिए. उदाहरण के लिए- 'यह किताब रुपये 50 की है' की जगह 'यह किताब 50 रुपये की है' लिखा जाना चाहिए. आप क्‍या कहते हैं?
Added by Ganga Sahay Meena on November 13
Kim YongJeong, Anoop Aakash Verma, Manoj Chhabra and 37 others like this.

Arbind Kumar Mishra Sahi kaha aapne,Hindi Bhasha ki apni prakriti hai.
November 13 at 10:52pm · Unlike · 2 people
Wekas Inquilab अब क्या किया जाये ,ये निशान ही देख लीजिये जब वो बीच वाला डंडा उनकी नक़ल करके लगाया गया है तो इस्तेमाल भी तो उनकी नक़ल करके ही किया जायेगा | नक़ल करने में हमसे अच्छा कोई नही कुछ दिनों में शायद 'रुपये ५०' बोलने की भी आदत डाल ही लेंगे |
November 13 at 11:00pm · Unlike · 5 people
Veer Aditya yes!
It is Hindi Syntax Respected!
November 13 at 11:02pm · Like
Wekas Inquilab इस निशान की जगह अगर "रु " होता तो शायद इसकी अंतर्राष्ट्रीयता कम हो जाती |
November 13 at 11:05pm · Like · 1 person
सुयश सुप्रभ Suyash Suprabh गंगा सहाय जी, अंग्रेज़ी की वाक्य संरचना, शैली आदि से हिंदी 'आतंकित' रहती है। इसकी एक वजह यह है कि हिंदी में मौलिक लेखन को बढ़ावा नहीं दिया जाता है। मीडिया को मुनाफ़े से मतलब है और सेठ, नेता आदि अपनी बात जिस हिंदी में लोगों तक पहुँचाते हैं उससे उनका काम तो निकल जाता है लेकिन भाषा कराहती रह जाती है। पूँजी के साम्राज्य में न तो खेत-खलिहान सुरक्षित हैं न भाषा।
November 13 at 11:31pm · Unlike · 9 people
गंगा सहाय मीणा सही कहा आपने. दरअसल यह हमारी गुलाम मानसिकता का प्रतीक है. यह पूंजी के साथ सांस्‍कृतिक साम्राज्‍यवाद का दौर है.
November 13 at 11:36pm · Like · 7 people
Arbind Kumar Mishra Lekin Hindi bhasha ke wakya vinyas ko bachana hamara hi kartavya hai
November 13 at 11:37pm · Unlike · 4 people
Manohar Das दरअसल वाणिज्य और अर्थशास्त्र को भाषा से जोड़ा जाना उचित नहीं है. सब कुछ सुविधा को ध्यान में रखते हुए किया गया है. अग्रणी और सर्वेसर्वा की बात मानी जाती है. जब हमें भारत को India कहने से एतराज़ नहीं तो, यह तो प्रश्न को बेमानी है. भारत का पूरा ढांचा ही मुगलों और ब्रिटिश का दिया है . क्या क्या बदलोगे ? बेहतर है इसे ढंग से चला पाए वही काफी है.
November 13 at 11:54pm · Like · 4 people
Geeta Rana gsm sir kissi baat ko discuss karwana to koi aapse seekhe :) :) :)
ye bhi ek kala hai , congrates !!!
November 14 at 12:41am · Like · 3 people
Arbind Kumar Mishra Mai to abhi bhi yahi kahoonga ki ank ke baad hi is pratik ka prayog sab karen .
November 14 at 12:47am · Unlike · 2 people
Prithvi Parihar सही है लिखा तो तो यही जाना चाहिए कि किताब 50 रुपये की है.
November 14 at 8:41am · Unlike · 3 people
Uday Prakash लेकिन जब 'लोगो' (logo) या 'चिह्न' (sign) बनते हैं, तो वे शब्दों को विस्थापित (replace) करते हैं। ऐसे में वाक्य-संरचना (syntax) में लागू होने वाले व्याकरण के नियम, उन पर लागू नहीं होते। 'प्रत्यय' अथवा 'पूर्व-सर्ग' (prefix) या 'अंत:-सर्ग' की तरह उन पर विचार करना (मेरी समझ से) ठीक नहीं होगा। डालर ($) या यूरो (e) वगैरह के चिह्न भी 'अंकों' के पहले इस्तेमाल होते हैं। इसलिये इस चिह्न को भी, रिज़र्व बैंक द्वारा स्वीकृति मिलने के बाद, अंतरराष्ट्रीय मानक-चिह्नों की तरह ही, अंक के पहले प्र्योग किया जाना चाहिए। 'लोगो' या 'चिह्न' के संदर्भ में 'हिंदी' और 'अंग्रेज़ी' जैसे भाषा विभेद का सवाल उठाना भी बहुत तार्किक नहीं होता। यह चिह्न एक अंतरराष्ट्रीय मुद्रा मानक (currency sign) है, जो कि भाषेतर है और चित्रात्मक (pictorial) है। उदाहरण के लिए आप यह देखें :
@ $70,567/ 10% उपभोक्ता. ( सत्तर हज़ार पांच सौ सरसठ डालर के मूल्य से प्रति दस प्रतिशत उपभोक्ता)
उपर्युक्त वाक्य को आप पढ़ सकते हैं। हिंदी वाक्य -विन्यास का व्याकरण यहां लागू नहीं है। ऐसा मेरी समझ है।

4
November 14 at 9:02am · Unlike · 9 people
Sagar Jnu GYAAN VARDHAN K LIYE THNX SIR
November 14 at 10:06am · Like
Ghufran Raghib mujhe to hindi र se objection hai.
November 14 at 11:05am · Like
Shams Equbal aapka khayaal theek hai. zabaan bhi durust ho jaeegi aur ghulamana zehan se nijaat bhi
November 14 at 11:22am · Unlike · 1 person
Priyankar Paliwal उदय जी से पूर्ण सहमति है . अभी भी बैंकिंग/वाणिज्य आदि में सुरक्षा के हिसाब से भी रुपया पहले लिखा जाता है और मात्र या केवल से समाप्त किया जाता है. इससे वर्णित/लिखित राशि में दोनों ओर से टेंपरिंग की गुंजाइश समाप्त हो जाती है. मुद्रित प्रपत्रों तथा चैक आदि में भी इससे यह सुविधा होती है कि चिह्न के आगे लिखी धनराशि के लिए इच्छित/उपयुक्त स्थान का सुरक्षित उपयोग किया जा सकता है.
November 14 at 11:29am · Like · 4 people
सुयश सुप्रभ Suyash Suprabh यूरोप के कई देशों में यूरो का चिह्न संख्या के बाद लिखा जाता है। इस विषय पर विस्तृत जानकारी निम्नलिखित लिंक पर उपलब्ध है :

http://en.wikipedia.org/wiki/Linguistic_issues_concerning_the_euro

कुछ उदाहरण नीचे प्रस्तुत हैं :

अल्बानियाई 3,14 €
चेक 3,14 €
पुर्तगाली 3,14 €

जब इन भाषाओं से अंग्रेज़ी में अनुवाद होगा तब अंग्रेज़ी के मानक, परंपरा आदि का ध्यान रखा जाएगा। लेकिन भारत में यह काम अनुवाद से पहले ही हो जाता है। हम अपनी भाषा में अंग्रेज़ी के मानको को मान्यता देने में लग जाते हैं। भारत में संख्या के बाद मुद्रा चिह्न के प्रयोग को मान्यता मिलने की संभावना बहुत कम है। हमारी भाषा इतनी सशक्‍त नहीं है कि वह चिह्नों का प्रयोग अपनी प्रकृति के अनुसार करे। उसे हर बात के लिए अंग्रेज़ी मानकों की आवश्यकता होती है। अंग्रेज़ी के मानको को अंतर्राष्ट्रीय मानक मानने की भूल बहुत-से बुद्धिजीवी करते हैं।

अंग्रेज़ी का आतंक इतना है कि हम अमेरिकी के बदले अमेरिकन, योग के बदले योगा, राम के बदले रामा आदि शब्दों का प्रयोग करने लगे हैं। अगर आप ठीक से याद करें तो आप जान जाएँगे कि अंतिम बार आपने कब 'योग' को 'योगा' कहा था...
November 14 at 12:09pm · Unlike · 2 people
Uday Prakash लेकिन सुयश जी, फ़्रांस, पुर्तगाल जैसे देश भी हमारे औपनिवेशिक शासक रह चुके हैं, उनमॆं चिह्न संख्या के बाद आता है। दूसरी तरफ़ ब्रिटेन, अमेरिका, हालैंड, जर्मनी जैसे देश हैं, जिनकी वितीय-वाणिज्यिक हैसियत विश्व-अर्थ व्यवस्था में हम जानते हैं। इनमें से ब्रिटेन भी हमारा पूर्व शासक रह चुका है।
अब अगर हम इस चिह्न का उपयोग अंक के पहले करें या बाद में, वह तो 'अनुकरण' ही होगा। कहीं ऐसा तो नहीं कि रिजर्व बैंक का यह फ़ैसला किसी का 'अनुलरण' हो ही नहीं, बल्कि अपनी सुविधा के आधार पर लिया ग्या निर्णय हो?
दूसरे, हिंदी या 'भारतीयता' जैसी भावना, अक्सर मैंने देखा है कि बहुत ठोस आधारों और तर्कों पर टिकी नहीं होती।
अगर हम खाने-पीने से लेकर पहनने-ओढ़ने और आवास से लेकर परिवहन, संविधान से लेकर समूचे लोकतांत्रिक ढांचे तक के निर्माण में संसार के अन्य विकसित देशों से कुछ न कुछ हासिल किया है, तो सिर्फ़ 'करेंसी' के चिह्न तक में इसे परिसीमित करना बहुत सही नहीं लगता।
अगर मज़ाक में कहा जाय तो क्या आलू, अमरूद, तंबाकू, मिर्च, टमाटर, चौलाई साग, बथुआ आदि खाते हुए हम क्या कभी सोचते हैं कि ये तो पुर्तगालियों की देन है? दुखद ही सही पर सच यही है कि टेक्नालाजी से लेकर अर्थव्यवस्था तक में और विचार से लेकर समाज-व्यवस्था तक में हम बहुत पिछड़ चुके हैं। हमारी मौज़ूदा अर्थनीति भी तो अमेरिका और यूरोप के अनुकरण के ही आधार पर ही निर्मित है! फिर भला रुपये का लोगो किस मौलिक तरीके से बनायें और फिर उसे कहां लगायें...?
November 14 at 2:04pm · Unlike · 8 people
Arun Dev ‎"आलू, अमरूद, तंबाकू, मिर्च, टमाटर, चौलाई साग, बथुआ आदि खाते हुए हम क्या कभी सोचते हैं कि ये तो पुर्तगालियों की देन है?" उदय जी वास्तव में कभी यह नहीं लगा कि हम कोई पुर्तगाली चीज खा रहे हैं.
इनके बिना तो आज के जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती.
November 14 at 2:42pm · Unlike · 4 people
सुयश सुप्रभ Suyash Suprabh उदय जी, शायद विषयांतर हो रहा है। आपने लिखा था - "डालर ($) या यूरो (e) वगैरह के चिह्न भी 'अंकों' के पहले इस्तेमाल होते हैं।" इसे तथ्य नहीं माना जा सकता है। कई यूरोपीय देशों में मुद्रा चिह्न को संख्या के बाद लिखा जाता है। कृपया इसे औपनिवेशिकता के संदर्भ में नहीं देखें। इससे संबंधित जानकारी आप निम्नलिखित लिंक पर देख सकते हैं :

http://en.wikipedia.org/wiki/Linguistic_issues_concerning_the_euro

क्या हिंदी में मौलिकता लाने का प्रयास व्यर्थ है? हम कब तक इसे अंग्रेज़ी की गरीब सहेली बनाए रखेंगे? मीडिया में हिंदी अनुवाद की भाषा बन गई है। अंग्रेज़ी से शब्द लेने में कोई बुराई नहीं है, लेकिन हर बात में अंग्रेज़ी मानको की दुहाई देना गलत है। वैसे भाषा तो प्रयोग से बनती-बिगड़ती है। जनता जिस रूप को स्वीकार करेगी वही रूप मानक बन जाएगा।

हिंदी की बात हमेशा भारतीयता से संबंधित नहीं होती है। संसार की हर भाषा दूसरी भाषाओं से शब्द लेती है। अंगेज़ी ने भी कई भाषाओं से शब्द लिए हैं। लेकिन अंग्रेज़ी उन शब्दों को अपनी प्रकृति के अनुसार ढाल लेती है। हिंदी में ऐसा नहीं हो पाता है। एक उदाहरण देना चाहूँगा। अंग्रेज़ी ने हिंदी से jungle शब्द लिया है। अंग्रेज़ी में इसका बहुवचन jungles होता है, न कि junglon (हिंदी व्याकरण के अनुसार) । हिंदी ने अंग्रेज़ी से 'चैनल' शब्द लिया, लेकिन बहुत-से लेखक इसे बहुवचन में 'चैनल्स' लिखते हैं। हिंदी की प्रकृति के अनुसार इसे 'चैनल' या 'चैनलों' लिखना चाहिए। मौखिक अभिव्यक्ति में हिंदी बोलते समय 'चैनल्स' का प्रयोग अनुचित नहीं है। हिंदी बोलते समय अंग्रेज़ी शब्दों का उच्चारण अकसर हिंदी के अनुसार नहीं होता है। यह हिंदी के मौखिक प्रयोग की सामान्य प्रवृत्ति है। लेकिन लिखित अभिव्यक्ति में एकरूपता, शब्द निर्माण आदि को ध्यान में रखते हुए भाषा के रूप को व्यवस्थित करने की कोशिश की जाती है। यह कोशिश हिंदी में बहुत कम दिखती है। इसकी वजह यह है कि हम अपनी भाषा को अंग्रेज़ी के सामने नतमस्तक देखना गलत नहीं समझते हैं।

भाषा में मौलिकता की बात जीवन से जुड़ी हुई है। इसे हमेशा भारतीयता से जोड़ना तर्कसंगत नहीं है। मुझे फ़ेसबुक पर हिंदी की बात करने पर लोगों से यह सुनना पड़ा कि मैं दक्षिणपंथी या संघी हूँ। बाद में मेरे संदेश पढ़कर कुछ लोगों की राय बदली, लेकिन बहुत-से लोग शायद अभी तक नाराज़ हैं।
November 14 at 3:35pm · Unlike · 3 people
Kamlesh Kumar Diwan sahi kaha hai,koi or shubh chinha hona chahiye thaa
November 14 at 4:58pm · Like · 1 person
Manish Ranjan sahmat
November 14 at 5:01pm · Like · 1 person
सुयश सुप्रभ Suyash Suprabh संतोष जी, यह सच है कि भारत के विश्वविद्यालयों में सेमिनारों की बहस प्राय: दिशाहीन होती है। इसमें चाटुकारिता भी खूब देखने को मिलती है। लेकिन भाषा का सवाल प्रासंगिक है। अगर आप गरीब जनता की बात करेंगे तो आपको जनता की भाषा पर भी ध्यान देना होगा। हिंदी समेत सभी भारतीय भाषाओं को समृद्ध बनाने की ज़रूरत है ।
November 14 at 5:10pm · Unlike · 3 people
Uday Prakash सुयश जी, आपके दिये हुए लिंक को देखने के बाद ही मैंने वह टिप्पणी लिखी थी। उसमें अगर देखें तो आप सहमत होंगे कि अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, हालैंड आदि ऐसे देश, जिनकी अर्थव्यवस्था पश्चिम में अपेक्षाकृत अधिक मज़बूत है और नयी अर्थनीति के तहत जिनके साथ रुपये का संपर्क और विनिमय अधिक हो रहा है, वहां यह 'लोगो' या 'चिह्न' अंक के पहले है। शायद इसी सुविधा के कारण रिज़र्व बैंक ने और इस चिह्न को चुनने वालों ने ऐसा निर्णय लिया होगा। यह सिर्फ़ मेरा अनुमान भर था। फ़्रांस, रूस और इटली आदि देशों में (वही लिंक आप देखें) में यह 'चिह्न' बाद में लिखा जाता है, इससे 'पहले' और 'बाद में' के दोनों प्रस्ताव स्थगित हो जाते हैं।
हिंदी के साथ हमेशा अंग्रेज़ी को खड़ा किया जाता रहा है। इससे हम सब परिचित हैं।
मुझे कुल मिलाकर इस बहस में ऐसा लग रहा है कि 'लोगो' (logo) या 'चिह्न' को भाषा, वह भी हिंदी और उसकी लिपि 'देव नागरी' के साथ जोड़ कर देखा जा रहा है। इसीसे ऐसे विचार और अपएक्षाएं पैदा हो रही हैं। रुपये के इस 'लोगो' को सिर्फ़ एक किसी भाषा और एक किसी लिपि के साथ जोड़ना उपयुक्त नहीं होगा। हिंदी तो चलिये फिर भी पश्चिम की अन्य भाषाओं की तरह भारोपीय परिवार (Indo-European) की भाषा है, लेकिन हमारे देश में तो द्रविड़, आग्नेय, अर्ध-आग्नेय आदि अनेक भाषाएं हैं। मेरा सिर्फ़ यह कहना है कि हिंदी के 'र' की तरह झलकते इस 'चिह्न' को अपनी भाषा से जोड़कर देखने की बजाय उसे भारतीय मुद्रा चिह्न (INR sign) की तरह देखा जाय।
बाकी शब्दों को अपने अनुकूल ढालने और बदलने की बात से मैं सहमत हूं। सात साल पहले हुए एक भाषा सर्वे में सामने आया था कि सूचना प्रौद्योगिकी के विस्तार और भूमंडलीकरण के परिणामस्वरूप, हिंदी का जितना संपर्क अन्य भाषाओं के साथ बढ़ा है, उसके चलते लगभग ४०० शब्द हर रोज़ इसमें आते हैं। कुछ हमेशा के लिए इसमें बस जाते हैं, और कुछ बाहर हो जाते हैं। यह प्रकृया काफ़ी तेज़ और जटिल है। एक सर्वेक्षण यह भी बतलाता था कि आज के औसत, व्यावहारिक, बोलचाल की हिंदी (साहित्य और पाठ्य-पुस्तकों की हिंदी नहीं) में सामान्य तौर पर तीन से सात भाषाओं के शब्द होते हैं। कुछ वाक्य तो ऐसे भी हैं जिनमें ग्यारह भाषाओं के शब्द हैं।
यह जो भाषिक स्मन्वीकरण और प्रसंस्करण इतने बड़े पैमाने पर हो रहा है, उसमें पहले की तरह 'अभिजन-नियंत्रण' और 'राजकीय' हस्तक्षेप बहुत प्रभावकारी नहीं रह गया है।
November 14 at 6:32pm · Unlike · 7 people
DrRaju Ranjan Prasad कुछ इनसे बड़े सवाल अभी तक अनुत्तरित हैं .
November 14 at 6:46pm · Unlike · 3 people
सुयश सुप्रभ Suyash Suprabh उदय जी, मुद्रा चिह्न का प्रयोग सभी भारतीय भाषाओं में होगा। अभी केवल हिंदी के संदर्भ में बात हो रही है। गंगा सहाय जी ने भी अपने संदेश में दो बार 'हिंदी में' शब्दों का प्रयोग किया है।

भाषा की अनेक प्रयुक्तियाँ होती हैं। अनौपचारिक भाषा किसी तरह के नियंत्रण से परे होती है। लेकिन जब भाषा को ज्ञान का साधन बनाया जाता है तब कुछ नियमों का पालन अनिवार्य हो जाता है। साहित्यिक भाषा और प्रयोजनमूलक भाषा में हमेशा अंतर होता है। प्रयोजनमूलक भाषा में कुछ नियम अनिवार्य हो जाते हैं। हिंदी को ज्ञान की भाषा बनाने के संदर्भ में लेखकों और बुद्धिजीवियों की उदासीनता मुझे कभी-कभी हैरान करती है।
November 14 at 7:12pm · Like
Mosam Rani AAP SAHI KAHTE HO BILKUL SAHI PAR SABHI LOG ISKO LIKH TO GALT TARIKE SE HI RAHE HAIN NA. KAYA KAR SKTE HAIN HUM ABB BATO..............................
November 14 at 9:51pm · Like
Raj Kishore आपसे पूरी तरह सहमत हूँ।
November 14 at 10:23pm · Like
Priyankar Paliwal हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यह यूनीकोड कन्सिर्शियम से प्रमाणित अन्तरराष्ट्रीय प्रतीक चिह्न है . साहित्य में इसका प्रयोग रवानी/प्रवाह/भाषा के स्वभाव के हिसाब से चाहे जैसे करें पर वाणिज्य/अर्थशास्त्र/बैंकिंग आदि में इसका प्रयोग उस डोमेन की सुविधा और सुरक्षा के हिसाब से ही निर्धारित होगा.सामान्यतः प्रपत्रों/चैक आदि में प्रतीक चिह्न पहले मुद्रित करना अधिक सुविधाजनक होता है . भले ही यह गद्यांश के बीच में गतिअवरोधक की तरह अटपटा लगे.
November 14 at 10:49pm · Unlike · 3 people
प्रवीण त्रिवेदी Praveen Trivedi प्रतीक चिन्ह या तो पहले लगता या फिर बाद में !
फिर भी इसमें इतने प्रश्न समाहित ?
गुलामी की मानसिकता से लेकर साम्रज्यवाद तक !!
धन्य हुए हम!
November 15 at 12:25am · Like · 1 person
Priyankar Paliwal ‎* कन्सोर्टियम
November 15 at 5:27pm
 
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