फेसबुक विमर्श - अंबेडकर बनाम गांधी


अजीब विडंबना है शाँति के नोबेल की-
मारटिन लूथर किंग को जब शाँति का नोबेल मिला तो उन्होंने सबसे पहले गाँधीजी को याद किया.
इसके बाद जब नेलशन मंडेला को शाँति का नोबेल मिला तो उन्होंने भी सबसे पहले गाँधीजी को याद किया.
और पिछले साल जब बराक ओबामा को शाँति का नोबेल मिला तो उन्होंने भी सबसे पहले गाँधीजी को ही याद किया.
शायद हम ही अपने महानायक को ऐसे समय में भूलते जा रहे है जबकि ऐसे समय में उन्हें याद किया जाना सबसे ज्यादा मौजूं है...
Added by Pukhraj Jangid on October 13, 2010
Surendra Singh, Arun Dev, Himanshu Pandey and 23 others like this.
गंगा सहाय मीणा शांति के संदर्भ में नेल्‍सन मंडेला और बराक ओबामा का नाम एक साथ लेना ठीक नहीं लग रहा. वैसे पुरस्‍कारों की अपनी राजनीति होती है.
October 14 at 12:33am · Like · 2 people
H.s. MeeNa bilkul sahi kha apne m bhi yahi khane wala hi tha.......
October 14 at 12:37am · Like · 1 person
पुखराज Pukhraj जाँगिड़ Jangid आप सही है लेकिन मेरा संदर्भ केवल गाँधीजी को याद करने वालों से है.
October 14 at 12:37am · Like
गंगा सहाय मीणा गांधी जी की जय बजरंग दल वाले भी बोलते हैं
October 14 at 12:38am · Like · 1 person
Jitendra Kumar ‎@GSM: the contradiction of Mandela and Obama itself reveals that Gandhi is not just a name or an ideology anymore..beyond of that this is a hijacked identity.. everyone use it with their convenience. What has been going on in India since long, now Obama does the same.. Apne Apne Gandhi.. in every house there is a Gandhi with their convenience and necessity..
October 14 at 12:39am · Unlike · 4 people
पुखराज Pukhraj जाँगिड़ Jangid शुक्रिया GSM जी और HSM जी........
October 14 at 12:39am · Like
H.s. MeeNa hw r u....
October 14 at 12:40am · Like
पुखराज Pukhraj जाँगिड़ Jangid शुक्रिया जितेंद्र भाई.
October 14 at 12:41am · Like
H.s. MeeNa rchna tbi mhan banti jab usme kavi ka dritikon jalkta h.......
October 14 at 12:43am · Like ·
गंगा सहाय मीणा ‎@Jitendra- सही कहा आपने. यह भी दिलचस्‍प है कि जागरूक दलित समाज के लिए गांधी आदर्श नहीं हैं.
October 14 at 12:44am · Like · 2 people
H.s. MeeNa jai...jai gandhi ji ki....
October 14 at 12:44am · Like ·
H.s. MeeNa kya gandhi dalit samaj ke liye prasangik h tell me......
October 14 at 12:49am · Like · 1 person ·
Vinay K Bhushan PUKHRAJ ji, Aaapse yeh aasha nahin thi. any way ksisi aur ka naam le liye hote. shanti ke agradut bahut hain......
October 14 at 12:52am · Unlike · 2 people ·
गंगा सहाय मीणा सही कहा विनय जी. शांति का नाम आते ही लोग गांधी का नाम लेते हैं, अम्‍बेडकर का कभी नहीं. अगर शांति शोषण सहने का नाम है तो निश्चिततौर पर अंबेडकर उसके पक्ष में नहीं थे. पहले हमें शांति संबंधी धारणा स्‍पष्‍ट करनी चाहिए.
October 14 at 12:58am · Like · 7 people
Manvendra Singh पुखराज जी आपने सही फ़रमाया, लेकिन हम भारतीयों की फीतरत ही ऐसी है कि हम अपने लोगों की महानता स्वीकार करने में हेठी समझते हैं और दूर देश के टूटपुन्झिया लोगों की छोटी से छोटी बात की तारीफ करने में पन्ने के पन्ने रंगने से भी नहीं हिचकते..........
October 14 at 12:59am · Like · 1 person ·
Vinay K Bhushan ‎@ GANGA Sir, aapne aankhe khol di.. unka v jinke samne Gandhi ke alawa aur koi dikhta hin nahin..
October 14 at 1:03am · Like · 1 person ·
Arvind Chouhan ap bilkul sahi hai hum log gandhi ko mah nayak manne say katra rahe hai na jane kayo
October 14 at 1:03am · Like ·
H.s. MeeNa accha comment............
October 14 at 1:05am · Like ·
Rajesh Raj MAHATMA ,SATYA & AHINSA KI BAH AATE HI SBHI LOG EK SUR ME GANDHI KA NAM LENE SE NAHI HICHKTE HAI..........AKHIR KYU?????
October 14 at 1:37am · Like · 1 person ·
Pravin Kumar गुलों में रंग भरे , बादें-नौबहार चले
चले भी आओ ,कि गुलशन का कारोबार चले
................................................
जिस घडी रात चले
जिस घडी मातमी , सुनसान , सियह रात चले
पास रहो
मेरे कातिल, मेरे दिलदार मेरे पास रहो
October 14 at 12:59pm · Like · 1 person ·
Surendra Singh Bapu ko yaad to aise moko par sabhi karte hai par koi bhi shanti ke nobel dene me ki jane wali ghatiya or swarthpurn Rajanit ki alochana or upeksha nhi karta...
badi vidambana hai,Pukhraj Bhai...ye puri duniya bahurupiye ki natak mandali lagti hai...
October 14 at 12:59pm · Like · 1 person ·
Dilip Mandal चीजें दूर से जैसी दिखती हैं वैसी होती नहीं है. इसलिए अमेरिका में बैठा अश्वेत गांधी को लेकर भ्रम पाल सकता है। भारत में दलित-आदिवासी और पिछड़ों के लिए गांधी के मायने अलग हैं। गांधी की मूर्तियां अब सरकार लगाती हैं, जनता ने हाल के वर्षों में उनकी मूर्तियां लगाना बंद कर दिया है। अंबेडकर इस मामले में बेहतर साबित हुए हैं।
October 14 at 2:43pm · Unlike · 6 people ·
Pankaj Chaturvedi and first we killed the gandhi than his views also----
October 14 at 2:44pm · Like · 1 person ·
Dilip Mandal गांधी के विचार हर किसी के लिए न कभी प्रासंगिक थे, न हैं। जिनके फायदे के लिए उनके विचार थे, वे पूजा करें।
October 14 at 2:47pm · Unlike · 6 people ·
Pankaj Chaturvedi agree
October 14 at 2:49pm · Like ·
Sharma Ramakant यहाँ देखने वाले का नज़रिया काम करता है , वैसे गाँधी जी कि प्रासंगिकता इन
दिनों बढ़ती हुई महसूस की जा रही है . जांगिड़ जी आपने अच्छा प्रश्न उठाया है .
October 14 at 3:39pm · Like · 1 person ·
Ritu Ranjan Kumar यह अजीब सी विडम्बना है कि अंतर्विरोधों से भरे गांधीवाद को बार-बार प्रासंगिक बताया जाता है. ऐसा इसलिए ताकि सामाजिक, राजनितिक और आर्थिक बदलाव की गति और दिशा को नियंत्रित किया जा सके. इस देश मे आस्था पर बहुत बल दिया गया है और तर्कपूर्ण आलोचना को हमेशा से दबाया गया है. अम्बेडकर से लेकर भगत सिंह जैसे लोगों ने गांधीवाद से असहमति जतायी थी और वे लोग किसी भी रूप में गांधी से कम नहीं थे.
October 14 at 5:24pm · Unlike · 4 people ·
Pankaj Chaturvedi when we compare a y two personalities, than it is not essential that we mark one below and another higher, relevancy of gandhi and bhagat singh can not be compare on same scale. in history of independence jinna and many characters were fought against imperialism and for independence but when they have started for pakistan than be anti-india for us. my request is to valuate some one should be on over all perspective not on one decision.
October 14 at 5:29pm · Like · 2 people ·
Ritu Ranjan Kumar If we compare Gandhi with personalities like Ambedker and Bhagat Singh then aim is to compare their thoughts for social, political and economic organistion. Both Ambedker and Bhagat Singh crticised casteism and really wanted to eradicate this evil. We are aware of what Gandhi opined about caste system.
It is true that even the ruling party (read Congress) which is assumed as the main bearer of Gandhian legacy can not dare to apply Gandhian theory in practise.
And most importantly, what we wish to assign as relevant is not an absolute thing. Alternatives are available. We test all available alternatives and then decide what is relevant. BTW, in this discussion Jinnah was not relevant.
October 14 at 5:56pm · Like · 2 people ·
Ashok Kumar Pandey Nobel Puraskar dene-lene vaalon aur Gandhi kii vrgiiy pakshdharata ek hii hai bhaai...
October 14 at 6:39pm · Like ·
Sandeep Saurav KUCHH MAMALON ME UNKE VICHAR ADBHOOT THE YAAR ...
October 14 at 8:39pm · Like ·
Meethesh Nirmohi Ambedkaraur Bhagat singh [Gandhi se asahmati rakhane ke karan hee to ] apnee vichardhara ke bal par AAJ BHEE hamare DALIT-VANCHIT SAMAJ MEN heero bane hui hain.Isi tarah Gandhi bhee apnee vichardhara aur darshan ke karan hee AAJ BHEE GANDHI bane huye hai...aur AAJ BHEE ve AMBEDKAR AUR BHAGAT SINGH KEE TARAH HEE HAMARE HEE SAMAJ MEN PRASANGIK BHEE mane jate hain. LUTHAR KING ,MANDELA YA PHIR OMABA RAHE HONGE shanti ka nobal purskar mila to UNHEN sabse pahle SHANTI KE SANDARBH MEN GANDHI HEE YAD AAYE.,aur istarah yad aana bhee swabhavik hee THA..Dalit-vanchiton YA KRANTI ka sandarbh aata to nisandeh hee Ambedkar aur Bhagat SINGH hee yad aate, GANDHI NAHEE. BHAI Pukh Raj jangid ne Shanti ke sandarbh men HEE Gandh ikoMAHANAYAK BATAYA HAI , ISE anyatha nahee liya jana chahiye.Jis tarah se ham abhivakti kee swatantrata kee bat karte hain,unhen bhee to yah swatantrata HASIL HAI.HAMEN YAH NAHEE BHUULNA CHAHIYE.
YAH SACHAI HAI KI ..Jab talak hamre samaj men Ashanti,Hinsha,varg bhed,asamanta, SAMPRDAYIKATA ,DALIT-VANCHIT,SHOSHIT AUR SHOSHAK HAIN TAB TALAK GANDHI , AMBEDKAR AUR BHAGAT SINGH KE VICHAR AUR DARSHAN UPSTHIT RAHENGE...ANYTHA YAH CHARCHA BHEE NIRARTHAK SIDDH HO JAYEGEE.
October 14 at 10:48pm · Like · 2 people ·
Lakhan Mishra BADE AFSOSO KE SATH LIKHNA PAD RAHA KI SHAYED UNKI AKAL MRATAU KE BAD JO LOG BACHE THE WO UNKO YAD HI NAHI RAKHANA CHAHTE THE ?" KYA YAHI HAI GANDHI KE SAPNO KA BHARAT"
October 14 at 10:54pm · Like ·
Ritu Ranjan Kumar इतिहास को गंभीरता से लिया जाए तो अच्छा है. इतिहास से खिलवाड़ घातक हो सकता है. अम्बेडकर का जीवन आज करोड़ों दलितों के लिए प्रेरणा का विषय है. भगत सिंह ने छोटी सी उम्र में जो उपलब्धि हासिल की उससे आज बहुत सारे युवा प्रेरणा लेते हैं. आज सरकारी इतिहास इनके बारे में ज्यादा नहीं बोलता. हाँ, गांधी विस्मृत नहीं हो पाए इसलिए देश की मुद्रा पर उनका चित्र छाप कर देश के कोने-कोने में पहुंचा दिया गया. दूसरी तरफ, सविंधान बनाने वाला महापुरुष आज केवल दलितों का नेता बन कर रह गया है. रही बात विरोध की तो अम्बेडकर के खिलाफ आमरण अनशन पर गांधी बैठे थे और भगत सिंह की सजा के समय अंग्रेजों से समझौता गांधी ने ही किया था.
October 14 at 11:15pm · Like · 2 people ·
Ashutosh Partheshwar ‎@दिलीप मंडल साहब, गांधी ने अपनी पूजा कभी नहीं चाही, न ही उनकी इच्छा अपना कोई वाद ही चलाने की थी। और इससे फर्क नहीं पड़ता कि सरकारें गांधी की प्रतिमाएँ लगवा रही हैं या नहीं। प्रतिमाओं के लगवाने से यदि किसी की महत्ता बढ़ जाती तब क्या बात थी !!! मायावती अंबेडकर की प्रतिमा लगवा रही हैं, भला है । महत्ता उनकी बढ़ेगी!!
यह भी स्पस्ट रखने की जरूरत है कि गांधी के लिए शांति शोषण को सहने का नाम नहीं है, वह व्यक्ति तो शोषण के खिलाफ ही लड़ाई लड़ता है, उसकी सफलता और असफलता का मूल्यांकन आप करें,पर उसकी नियत पर शक न करें।
बहुत आसान जुम्ला है, वर्गीय हित , और यह कहना कि जिनका वर्गीय हित गांधी से सधता हो, वे गांधी की पूजा करें....... हाँ, जब नोआखली और बिहार में दंगे हो रहे थे, तो उस आग में जलने वालों की पीड़ा को अपने पर महसूस करते हुए 79 साल की उम्र में भी वह व्यक्ति अपने किस स्वार्थ के लिए, किस लोभ के लिए, उस आग से जूझ रहा था, क्या इसलिए कि उसकी इच्छा नोबल पाने की थी, या एक मसीहा बन जाने की।
अपने छोटे स्वार्थ और छोटी राजनीति से हम ऐसे ही तर्क प्रस्तुत करेंगे । और, यह एक अकेला उदाहरण नहीं है। इससे कोई इंकार नहीं करेगा कि उनमें कोई अंतर्विरोध और सीमाएँ न थीं पर शब्दों के प्रयोग मे इतनी बदहवासी अच्छी नहीं।
और सीखना चाहें तो किसी से भी सीख सकते हैं, गांधी से सीखने के लिए तो एक मेरी एक उम्र बहुत कम है, आपकी नहीं कहूँगा! पर जब यह मान लें कि हमारा ज्ञान ही अंतिम है तो ......
गांधी की सीमाओं को कई दूसरे लोग पूरा करने का प्रयास करते हैं, अंबेडकर और भगत सिंह उनमें से प्रमुख हैं ।
October 14 at 11:35pm · Like ·
Ritu Ranjan Kumar ‎"गांधी की सीमाओं को कई दूसरे लोग पूरा करने का प्रयास करते हैं, अंबेडकर और भगत सिंह उनमें से प्रमुख हैं."

बस यहीं गांधीवादी धर लिए जाते हैं. गांधी का रास्ता अलग था- राजनीति में धर्म का मेल, औद्योगिक सभ्यता का विरोध, जमींदारों और पूंजीपतियों के प्रति सहानुभूति, वर्णव्यवस्था का समर्थन आदि आदि. भगत सिंह और अम्बेडकर के पास समाज के लिए कुछ ठोस था जो तार्किक था. वैसे, अम्बेडकर को जो सिर्फ दलित नेता मानते हैं उनकी जानकारी के लिए बता दिया जाए कि अम्बेडकर ने मजदूरों और औरतों की भलाई के लिए भी बहुत प्रयास किया था.
ग्राम्शी ने बताया है कि किस प्रकार सत्ताधारी वर्ग सांस्कृतिक वर्चस्व के जरिये अपनी वैधता स्थापित करता है. ये बहुत सटीक बात है. दलितों को भी अपनी सांस्कृतिक विरासत को प्रस्तुत करने का पूरा अधिकार है. अगर मायावती मूर्तियां बनवा रहीं हैं तो इसमें गलत क्या है.
October 14 at 11:56pm · Like · 3 people ·
Asrar Khan Gandhi ji ka naam Log iss liye lete hain kenvki Barak obama jaisse log Bharat ko ussi keechad mein fansa hua dekhna chahte hain. Asal mein bharat ko Gandhi ki nahin Bhagat singh ki jaroorat thie...Tab bharat ab tak vikshit desh ban gaya hota na ki aaj jaissa Vanshvaad aur Kuposhad tatha gareebi beimani Crime ,Bhrashtachar ke bhanwar mein Ek bechan aur Ashantusht logon ka desh bankar ....
October 15 at 12:06am · Like · 1 person ·
पुखराज Pukhraj जाँगिड़ Jangid आधुनिक भारत की विडंबनाओं को सही से समझने, समझाने और उस पर अमल के लिए अंबेडकर जरूरी ही नहीं वरन अनिवार्य है और उसका कोई विकल्प नहीं हो सकता. और प्रासंगिकता संवादहीनता से नहीं उपजती, वह हमेशा संवाद चाहती है. अंबेडकर और गाँधी के बीच संवाद कभी खत्म नहीं हुआ था. हाँ, गाँधीजी के निधन ने उसपर विराम अवश्य लगाया लेकिन उसे खत्म तो हमने किया है. तमाम असहमतियों के बावजूद वो दोनों तो आजीवन एक-दूसरे के ध्रुव-संवादी बने रहे थे इस बात पर भी गौर किया जाना चाहिए. रही बात बजरंगदल वालों द्वारा गाँधी की जय बोलने की तो हमारे देश में भगतसिंह के नामलेवाओं, कामलेवाओं और दामलेवाओं की लंबी परंपरा रही है. हाँ, भगतसिंह, धर्म आदि कई मसलों पर गाँधीजी से घोर असहमतियाँ मेरी भी है लेकिन अपनी तमाम असहमतियों के बावजूद कहना चाहूँगा कि उनका रास्ता कभी भी बजरंगदल वालों वाला रास्ता नहीं था और न ही बजरंगदल वाले गाँधीजी को अपना आदर्श मानते है और न मैंने ऐसा सुना. ‘अहिंसा’ के रास्ते पर चलने के लिए जिस अद्मय साहस की जरूरत होती है वह ‘हिंसा’ के माध्यम से प्रदर्शित साहस से कमतर नहीं है. कम से कम मुझे तो ऐसा ही लगता है क्योंकि ताकतवर तो अपनी बात ताकत के बूते मनवा लेगा लेकिन कमजोर क्या करे !!! उस समय जब कोई हाशिए पर मौजूद सबसे कमजोर और सबसे अंतिम कतार में खड़े आदमी (जिसमें दलित, आदिवासी और स्त्री भी शामिल है) की बात सुनने तक को तैयार तक न था और हिंसा के माध्यम से वह अपनी बात रखने और कहने में असमर्थ था ऐसे विपरित समय में उन्हें गर्वसहित अपनी बात रखने का जो अहिंसात्मक (अहिंसा का) और असहयोगात्मक (असहयोग का जो) रास्ता गाँधीजी ने सुझाया था वह अपने आप में औरों के साथ-साथ हाशिए की तमाम अस्मिताओं के लिए भी मील का पत्थर सिद्ध हुआ...तमाम मतभेदों के बावजूद यहाँ अंबेडकरजी और गाँधीजी एकदम अलग तो नहीं ही है. यहाँ गाँधीजी के बगैर न तो अंबेडकरजी को समझा जा सकता है और न अंबेडकरजी के बगैर गाँधीजी को.
October 15 at 2:48am · Unlike · 2 people ·
पुखराज Pukhraj जाँगिड़ Jangid सुरेंद्र जी, एकदम सही फरमाया आपने कि- ‘ये पूरी दुनिया बहरूपियों की नाटकमंडली लगती है.’
October 15 at 2:48am · Like ·
पुखराज Pukhraj जाँगिड़ Jangid ‎@विनय भाई, जिन तीन नोबेल शाँति पुरस्कर्ताओं का उल्लेख मैंने किया है वे तीनों अश्वेत है. मारटिन लूथर किंग और नेलशन मंडेला तो अपने-अपने समय में सकारात्मक बदलावों और प्रतिरोध की वैश्विक संभावनों के सर्वश्रेष्ठ प्रतीक रहे है और आज भी है. जैसा कि मैंने स्वीकार किया कि- “आप सही है लेकिन मेरा संदर्भ केवल गाँधीजी को याद करने वालों से है.” मुझे बराक ओबामा का नाम उनके साथ नहीं लेना चाहिए था, बराक ओबामा का नाम मैंने एक अमेरिकी होने से कहीं अधिक अश्वेतों के वैश्विक संभावनों के समकालीन प्रतीक होने के कारण लिया. आपको बुरा लगा क्षमाप्रार्थी हूँ. शुक्रिया.
October 15 at 3:18am · Like · 1 person ·
Vinay K Bhushan ‎@ Pukhraj bhai, buri chizein buri hin rahti hai jabtak usko bade level par sudhara nahin jaye, isme aapki koi galti nahin hai. Historian logon ne galti kiya hai unko aaj ki generation se kshama mangni chahiye
October 15 at 4:28am · Like ·
Ashutosh Partheshwar ‎@ पुखराज जी, ओबामा का आकर्षण और उसकी संभावनाएँ एक अश्वेत के रूप में ही देखी और चाहिए गई थीं, एक ऐसे समाज में जिसकी छवि ऊपर से भले ही उदारतावादी और आधुनिक है, उसकी विडंबनाएँ ओबामा के साथ न केवल प्रत्यक्ष हुई थीं और बल्कि एकबारगी कमजोर भी हुई थीं। क्या ओबामा को बहिष्कृत करने के पीछे नोबल ही नहीं है !!!
मार्टिन लूथर किंग और मंडेला के साथ उनका नाम न लेना, एक बात है, पर मैं अभी भी मानता हूँ कि यह इतना अयाचित और लज्जास्पद नहीं है जिसके लिए क्षमा की बात आए ।
कोई विचार पूर्ण नहीं हो सकता, यह हमारी जवाबदेही है कि हम उनमें संवाद की संभावनाएँ तलाश सकते हैं या नहीं, आपने गांधी और आंबेडकर के परस्पर संबंध में उचित टिप्पणी की है। गांधी की अहिंसा का आपका विश्लेषण सटीक है।
पूरी विनम्रता से मैं बस यही कहना चाहूँगा, कि एक को बड़ा दिखाने के लिए दूसरे को छोटा दिखाने में हमारा ही छुटपन दिखता है। हमें इस बहस से बाहर निकलना होगा कि कौन अधिक बड़े थे । यह बहस के मोर्चे से भागने का उपक्रम नहीं है बल्कि अपनी जरूरत को पूरा करने की कोशिश है । मैं चीजों को इसी तरह देखता हूँ ।
October 15 at 10:26am · Like · 1 person ·
Ritu Ranjan Kumar शिक्षा से ही हमारी सोच बनती (और बिगड़ती भी) है. आजादी के बाद जो इतिहास स्कूलों और कॉलेजों में परोसा गया उसके पीछे मकसद आजादी में कांग्रेस की भूमिका को प्रचारित करना था. एक गैर संवैधानिक पद – “राष्ट्रपिता”, पर “बापू” को आसीन करके ये बताया गया कि आजादी सिर्फ उनके ही प्रयासों से संभव हो पाई और गांधी नहीं होते तो आजादी नहीं मिलती या बहुत देर से मिलती. अब ये देश ठहरा आस्थावान. “राष्ट्रपिता” की भूमिका पर कोई बहस कैसे हो सकती थी? लेकिन समय बदल रहा है और इस बदलते समय की उपेक्षा नहीं की जा सकती है.
October 15 at 12:50pm · Like · 3 people ·
Dilip Mandal ‎@ Ritu Ranjan Kumar, आपने काफी गंभीर और महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। आपकी बातों से इस विवाद को समझने का नया रास्ता मिला है। धन्यवाद।
October 15 at 12:52pm · Like ·
Ritu Ranjan Kumar दिलीप साहब आपका धन्यवाद. मैंने जो टिपण्णी की है वो कोई नई बात नहीं है और सभी को पता है. मैंने तो बस टिपण्णी करने का साहस (या दुस्साहस) भर किया है.
October 15 at 1:23pm · Like · 1 person ·
Ashok Kumar Pandey मैंने पहले भी कहा की नोबेल देने -लेने वालों और गांधी की वर्गीय पक्षधरता एक जैसी है. 'हिंद स्वराज' की समीक्षा में मैंने जब इसे 'हिन्दू पुनरुत्थानवाद का घोषणापत्र ' कहा था तो लोगों ने बहुत आपत्ति की थी.. अब यहाँ जो बातें सामने आयीं हैं उनसे मुझे बहुत बल मिला है...गांधी पूंजीवादी मीडिया और जनविरोधी सरकारों के लाडले हैं .
October 15 at 2:03pm · Like · 2 people ·
Ashutosh Partheshwar जब चीजों को समय-संदर्भ से काट के देखेंगे तो 'हिन्द स्वराज' क्या उसी दौर की किताब 'सोजे वतन' भी 'ह्ंदु पूनरुत्थान को घोषणापत्र' दिखाई देगा।
बापू को चाहने वाले कॉंग्रेस की पृष्ठभूमि से अलग और उसकी 'राजनीति' से मुख्तालिफ़ विचार वाले लोग भी हो सकते हैं, और वे जो यह मानते हैं कि स्वतंत्रता संग्राम में केवल गांधी की भूमिका नहीं थी, वैसे ही जैसे केवल आंबेडकर और भगत सिंह की भी नहीं थी..... अंग्रेजों ने मेरे गाँव के एक टोले को पूरी तरह घेर कर जला दिया, तो वे लोग जिन्होंने इसकी कीमत चुकाई, उनका भी महत्व है। यह तो सोचने वाली बात है कि वामपंथी पृष्ठभूमि से आने वाले लेखकों और संपादकों ने जब एन सी ई आर टी की किताब तैयार की तो ऐसा कैसे हो गया कि सबसे अधिक तस्वीरें नेहरू की ही दिखाई दीं।
गांधी को बापू या राष्ट्रपिता कॉंग्रेस ने नहीं बनाया, और न आजादी के बाद उन्हें इस तरह पुकारा गया। यह हमेशा याद रखना चाहिए।
October 15 at 5:10pm · Like · 1 person ·
Ritu Ranjan Kumar बापू के चेलों से सिर्फ एक सवाल- डरबन से प्रिटोरिया जा रहे गांधी को अगर रेलवे के फर्स्ट क्लास के डिब्बे से गोरे बाहर नहीं निकालते तो क्या देश आजाद नहीं होता?
October 15 at 5:50pm · Like · 2 people ·
Ashok Kumar Pandey हर चीज़ को वामपंथ को गरियाने का मौक़ा न बनाईये. अगर आपने वह आलेख पढ़ा हो तो तर्क सहित बताईये की कैसे वह विवेचना समय-सन्दर्भ से कटी है और कैसे वर्ण-व्यवस्था का समर्थन, जाति प्रथा के खिलाफ आये बिल का विरोध, महिलाओं के घर से बाहर निकलने का विरोध, ब्राह्मण आधारित शिक्षा पद्धति का समर्थन, धार्मिक पाखण्ड का बचाव और आधुनिक हर चीज़ का विरोध पुनरुत्थान का समर्थन नही है. यहाँ यह भी बता दूं कि गांधी ने कभी इस किताब को डिसओन नही किया.

रहा सवाल बापू का तो जिन्हें पोरबंदर और सौराष्ट्र की भाषाई समझ है वे जानते हैं कि वहां 'बापू' किसे कहा जाता है. जिस तरह का धार्मिक रहस्यवाद उन्हें केंद्र में रखकर कांग्रेस के हिंदूवादी तत्वों ने चलाया उसने हिन्दी क्षेत्र में उनकी यह देव छवि रची जो उनके साथ ही ख़त्म हो गयी. राष्ट्रपिता का नाम उन्हें किसने दिया यह सब जानते हैं. कांग्रेस ने उन्हें सरकारी प्रश्रय जिस तरह दिया वह उनके नोट से दीवार तक छाये रहने का कारण बना.
October 15 at 5:51pm · Like · 2 people ·
Ashok Kumar Pandey और गांधी जी उर्फ़ बापू ने पहली बार आजादी की मांग कब की?
October 15 at 6:00pm · Like ·
Ritu Ranjan Kumar द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सारी दुनिया में उपनिवेशवाद का पतन शुरू हुआ. एशिया में भारत, श्रीलंका और हिन्दचीन के देशों की स्वतन्त्रता इसी विऔपनिवेशिकरण की प्रक्रिया थी. भारत का शासन अंग्रेजों के लिए नैतिक और आर्थिक रूप से कठिन हो चला था. अंग्रेजों ने तो भारत को नियत समय के कुछ पहले ही छोड़ने की घोषणा कर दी थी. देश की स्वतन्त्रता में गांधी और कांग्रेस की भूमिका को बढ़ा-चढ़ा कर बताने वालों के लिए इतिहास की समझ आवश्यक है. रौलेट, असहयोग, सविनय अवज्ञा तथा भारत छोड़ो आंदोलन, कोई भी सफल नहीं हुआ.
October 15 at 6:29pm · Like · 1 person ·
Ashutosh Partheshwar जो नहीं हो सके पूर्ण काम उनको प्रणाम !
October 15 at 10:46pm · Like ·
Ritu Ranjan Kumar “जो नहीं हो सके पूर्ण काम उनको प्रणाम”
तो अब अपनी आस्था को दीजिए विश्राम
और हो जाए अब यहीं पर युद्ध विराम
हम मचा नहीं रहे कोई कोलाहल कोहराम
और चाहते भी नहीं कोई वाक्-युद्ध-संग्राम
जिसने भी किया है सच्चे दिल से काम
लोग याद करेंगे और लेंगे उसका नाम
आप कीजिये अधूरे काम को प्रणाम!!!
October 15 at 11:53pm · Like ·
गंगा सहाय मीणा ‎''कांग्रेस और गांधी के लिए 'अस्पृश्यों की मुक्ति' एक अंदरूनी समस्या थी जबकि अंबेडकर के लिए सर्वाधिक अहम समस्या। जमींदारी प्रथा की तरह जाति प्रथा और अस्पृश्यता का समाधान गांधी हृदय परिवर्तन में खोजते थे। वे वर्णाश्रम को बनाये रखते हुए अस्पृश्यता खत्म करने के पक्षधर थे जबकि अंबेडकर वर्ण और जाति को ही अस्पृश्यता की जड मानते हुए इनका खात्‍मा जरूरी समझते थे। गांधी के 'दयाभाव' के बरक्स अंबेडकर अस्पृश्यों के लिए अधिकारों की मांग करते हैं।''
-''अंबेडकर और गांधी - संवाद जारी है'' से.
लिंक-
http://www.visfot.com/index.php/seminar/2996.html
October 17 at 2:44am · Like · 1 person
पुखराज Pukhraj जाँगिड़ Jangid तो संवाद जारी है, जानकर बेहद खुशी हुई... इस अत्यंत ही महत्त्वपूर्ण लिंक को साझा करने के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया गंगासहायजी. पढकर आत्मा प्रसन्न हुई. बहुत ही बढिया, महत्त्वपूर्ण, प्रासंगिक और सारगर्भित लेखन के लिए तहेदिल बधाई... क्या मैं इसे ब्लॉग पर साझा कर सकता हूँ?
October 17 at 3:23am · Like ·
गंगा सहाय मीणा शुक्रिया. जरूर. मुझे खुशी होगी.
October 17 at 3:24am · Like
पुखराज Pukhraj जाँगिड़ Jangid आपका बहुत-बहुत शुक्रिया गंगासहायजी. जब बात निकली है तो दूर तलक जानी ही जानी चाहिए...
October 17 at 3:42am · Like ·
Ravi Malik ha ha ha ha ha
October 17 at 11:43am · Like ·

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