समय की पुनर्रचना - गंगा सहाय मीणा
गुरुवार, जून 28, 2012
गंगा सहाय मीणा
अपने अपने अज्ञेय (दो खंडों में)
*ओम थानवी
*वाणी प्रकाशन,
*नई दिल्ली
*कीमतः 1,500 रु.
*vaniprakashan@gmail
वर्ष 2011 कई बड़े रचनाकारों का जन्म शताब्दी वर्ष था-फैज, नागार्जुन, शमशेर, अज्ञेय, केदारनाथ अग्रवाल आदि. अकादमिक गलियारों में जन्म शताब्दी वर्ष की धूम रही. पत्र-पत्रिकाओं ने विशेषांक निकालकर अपना धर्म निभाया. इस पूरी प्रक्रिया में आशानुरूप सबसे विवादास्पद सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन का 'अज्ञेय' व्यक्तित्व रहा, और सार्थक भी. यह तथ्य इस बात का परिचायक है कि अज्ञेय के व्यक्तित्व और साहित्य में ऐसा कुछ है जो पाठकों से संवाद करता है.
अज्ञेय पर लिखे संस्मरणों की, दो भागों वाली इस किताब अपने अपने अज्ञेय को ओम थानवी ने संपादित किया है. इस संकलन में अज्ञेय के समकालीन और अज्ञेय से किसी-न-किसी रूप में संबंधित रहे सौ प्रमुख लोगों के संस्मरण शामिल किए गए हैं. यह पुस्तक संस्मरणों की रस्मअदायगी वाली कोई सामान्य पुस्तक न होकर एक संदर्भ ग्रंथ की तरह है.
इसके 'संस्मरणों' में अज्ञेय के व्यक्तित्व से लेकर साहित्यिक जीवन की स्मृतियां तो हैं ही, साथ ही उनका तिथिवार जीवन-वृत्त, प्रकाशन वर्ष के साथ उनकी कृतियों की सूची और अज्ञेय से संबंधित पुस्तकों की सूची के अलावा एक अच्छी अनुक्रमाणिका भी है.
संस्मरणों की भी दो दिलचस्प विशेषताएं हैं-ये संस्मरण एक दिवंगत लेखक के प्रति श्रद्धांजलि मात्र न होकर उसके व्यक्तित्व और लेखन की विविध छवियों को आलोचनात्मक ढंग से प्रस्तुत करते हैं; दूसरे, इसमें उनके विरोधियों के संस्मरण भी शामिल किए गए हैं, यहां तक कि कुछ विरोधियों से भी लिखवाया गया है.
सभी पक्षों को सामने रखकर पाठकों को राय बनाने की छूट देना एक ईमानदार संपादक की पहचान होती है और ओम थानवी ने जनसत्ता से लेकर इस पुस्तक तक में अपने संपादक धर्म को बखूबी निभाया है. थानवी ने एक अच्छी भूमिका के 'चार शब्द?' लिखकर किताब को पढ़कर अज्ञेय को समझने के लिए उतरने वालों का रास्ता आसान कर दिया है-उन्हें रास्ते की जटिलताओं से परिचित कराके.
पिछले ही वर्ष मुअनजोदड़ो जैसा यात्रा वृत्तांत लिखकर थानवी साहित्य की दुनिया में एक जरूरी हस्तक्षेप कर चुके हैं. सामग्री के चयन और संपादन में सजगता इस पुस्तक में भी देखी जा सकती है. थानवी ने एक अच्छे संस्मरण-संकलन की विशेषता स्पष्ट करते हुए लिखा है, ''अच्छा संस्मरण रचना का सुख देता है.
उसमें तथ्य होते हैं, घटनाएं (या दुर्घटनाएं) होती हैं, लेखक के बारे में है तो उसकी कृतियों के ब्यौरे होते हैं, कुछ विवेचन भी होता है, पर अंततः संस्मरण स्मृति के सहारे समय की सरस पुनर्रचना है.'' वास्तव में अपने अपने अज्ञेय उस समय की पुनर्रचना है, जिसमें अज्ञेय रच रहे थे.
इन संस्मरणों में अज्ञेय के विविध रूप सामने आए हैं. एक साहित्यकार के रूप में कविता, कहानी, उपन्यास, नाटक, व्यंग्य, संस्मरण, यात्रा-वृत्तांत, डायरी, स्तंभ, अनुवाद, निबंध, आलोचना आदि विधाओं में अज्ञेय ने सशक्त हस्तक्षेप किया, वहीं जीवन में छापामारी, यायावरी, अध्यापन, पत्रकारिता, चित्रकला, मूर्तिकला, छायाकारी, पाककला, बढ़ईगीरी, दर्जीगीरी, केशकर्तन, बागवानी आदि में हाथ डाला और कुछ सार्थक करने का प्रयास किया.
सौ महत्वपूर्ण लेखकों, आलोचकों द्वारा अपने समय के एक जरूरी लेखक के बारे में लिखना निश्चित तौर पर महत्वपूर्ण है. और इस उद्यम को सार्थक बनाने के लिए पत्र-पत्रिकाओं और पुस्तकों में पूर्व प्रकाशित संस्मरणों को संकलित करने के अलावा कुंवर नारायण, केदारनाथ सिंह, विश्वनाथ त्रिपाठी, विजयमोहन सिंह, गंगा प्रसाद विमल, राजेश जोशी आदि दर्जनों लेखकों ने इस किताब के लिए विशेष रूप से लिखा है, जिससे संकलन में ताजगी आ गई है.
थानवी ने प्रतिपक्षियों के आलोचनात्मक संस्मरण छापकर पाठक को 'अज्ञेय छवि' को अपनी कल्पना में सृजित करने के लिए पर्याप्त अवसर दिया है. ऐसे में लंबी भूमिका के बहाने संपादक का अज्ञेय पर लगे आरोपों का जवाब तैयार करना थोड़ा खटकता है.
संस्मरणों के शीर्षक पुस्तक में संकलित सामग्री के साहित्यिक स्तर और महत्व की पूर्वपीठिका तैयार करते नजर आते हैं, जैसे 'सड़क जहां समाप्त होती है' (विष्णु प्रभाकर), 'जिसका वह आखेट करता है' (कृष्णा सोबती), 'सन्नाटे में छंद' (प्रभाष जोशी), 'मानव की तीसरी आंख' (विश्वनाथ प्रसाद तिवारी), 'डेढ़ शब्द और जलेबी' (पंकज बिष्ट) आदि.
इस तरह अज्ञेय जन्म शताब्दी के अवसर पर तैयार यह संकलन अज्ञेय के जीवन और साहित्य को सहमतियों-असहमतियों के साथ विमर्श के केंद्र में लाने में मदद करेगा और अज्ञेय के अध्येताओं के लिए संदर्भ ग्रंथ की तरह काम आएगा, यही इसकी सार्थकता है.
और भी... http://aajtak.intoday.in/story.php/content/view/700953/66/0/Books-review-time-restructuring.html
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